लेखनी प्रतियोगिता -23-Nov-2022 स्वैच्छिक विषय
सागरमल गोपा (1900 - 1946) जी का जन्म सन् १९०० में भारत के स्वतन्त्रता सेनानी एवं देशभक्त के रूप में हुआ था। वे राजस्थान के निवासी थे। इनके पिता जी का नाम अखेराज गोपा था, और इनके पिता जवाहर सिंह के दरबारी हुआ करते थे।
1986 में ज़ारी सागरमल गोपा जी के नाम का एक डाक टिकट जारी किया गया था।
इनका जन्म जैसलमेर में 3 नवंबर 1900 को हुआ था । इनके जन्म पर माता पिता और परिवारीजन बहुत खुश हुए थे। और उत्सव मनाया गया।
सागरमल गोपा का करियर
जैसलमेर के तत्कालीन महाराजा महारावल जवाहर सिंह ने रियासत में पत्र-पत्रिकाओं के छपने और पढ़ने पर रोक लगा रखी थी, वहां पर सागरमल ने सौ साल पहले ही एक लाइब्रेरी की स्थापना की थी। सागरमल सन 1921 में गांधीजी के साथ असहयोग आंदोलन का हिस्सा भी बने थे, और गांधी जी का साथ पाकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे। जैसलमेर निवासियों से उन्होंने इस आंदोलन का हिस्सा बनने का आह्वान किया था।
जैसलमेर व हैदराबाद ने इनकी क्रांतिकारी गतिविधियों को देखकर राज्य में इनके प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया था। उनके राज्य में घुसने की भी मनाही कर रखी गई थी। उन्हें लेखन कार्य में बड़ी रुचि थी। क्रांतिकारी गतिविधियों में सहभागिता के चलते सागरमल जी को जेल में डाल दिया गया। जेल में उन्होंने अपने लेखन को गति प्रदान करते हुए जैल में दो पुस्तकें भी लिख डाली थी। सागरमल गोपा जी ने अपनी पुस्तकों में अपने मनोभावों और व्यथाओ को लेखनीबद्ध किया। ‘जैसलमेर में गुण्डाराज" एवं ‘आजादी के दीवाने" जैसे प्रसिद्ध पुस्तके इन्ही की रचना है।
उन्होंने जैसलमेर के तत्कालीन महाराजा महारावल जवाहर सिंह के अत्याचारों को सहन न कर उनका पुरजोर विरोध किया था। इसीलिए महाराजा महारावल सागरमल जी की इन हरकतों से क्रोधित हो गए थे। सागरमल को तंग किया जाने लगा। जब सागरमल जी के सर के ऊपर से पानी गुजरने लगा तो इससे परेशान होकर वो नागपुर चले गए।
इसी बीच सन 1941 में उनके पिताजी अखेराज गोपा जी का देहांत हो गया, तब सागरमल जी को जैसलमेर आना पड़ा और जब सागर मल गोपा जी अपने पिता का पिण्ड दान करने के लिए वापस जैसलमेर आये। तभी इन्होंने अपने क्रांतिकारी भाषणों और लेखों से जैसलमेर महाराजा जवाहर सिंह को नाराज कर दिया। इसलिए इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। तो उन्हें 25 मई 1941 को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा 6 वर्ष की कठोर कारावास की सजा सुना दी गई। और फिर कठोर कारावास का सफर शुरू हुआ। उसी में समय निकालकर उन्होंने अपने लेखन कार्य को गतिमान रखा।
इनकी मृत्यु भी एक दर्दनाक हादसा कहीं जा सकती है। क्योंकि इनकी मृत्यु साधरण मृत्यु न होकर एक असाधारण कृत्य था। 4 अप्रैल 1946 के दिन थानेदार गुमानसिंह ने मिट्टी का तेल डालकर इन्हें जिंदा जला दिया गया। जलते जलते भी सागरमल गोपा जी की जुबान पर भारत माता की जय जयकार के नारों की एक बुलंद आवाज आ रही थी। मरणोपरांत
सागरमल गोपा के पुरस्कार और सम्मान
सन 1986 में भारत सरकार ने सागरमल गोपा के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था। इंदिरा गांधी नहर की एक शाखा भी उनके नाम पर नामित की गई थी, जोकि राजस्थान में आज भी स्थित है। पहले इस नहर को ‘राजस्थान नहर" के नाम से जाना जाता था।
भारत सरकार ने 1986 में सागरमल गोपा पर डाक टिकट जारी किया गया । उन्होंने तीन किताबे भी लिखी थी (1) जैसलमेर का गुंडा राज (2) रघुनाथ सिंह का मुकदमा (3) आज़ादी के दीवाने आदि
सागरमल गोपा ने जैल में लिखी दो पुस्तकें 'जैसलमेर में गुण्डाराज" एवं 'आजादी के दीवाने" जैसे प्रसिद्ध पुस्तकें काफी प्रचलित रचना रही। उन्होंने जैसलमेर के तत्कालीन महाराजा महारावल जवाहर सिंह के अत्याचारों का विरोध किया था इसलिए महारावल सागमल की हरकतों से क्रोधित हो गए।१९००
Haaya meer
24-Nov-2022 08:37 PM
Superb 👍
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Abhinav ji
24-Nov-2022 09:24 AM
Very nice👍👍 mam
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Gunjan Kamal
23-Nov-2022 07:16 PM
यथार्थ चित्रण
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अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'
23-Nov-2022 10:22 PM
शुक्रिया
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